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जब सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की हालत एसी है कि ५ साल में ७० % बच्चे ककहरा तक नहीं सीख पाते है,कक्षा ६ में उसे अ आ , क ख ही पढाना है,तो प्राथमिक विद्यालय बंद कर देने चाहिए.५ साल में बच्चा इतना कुंठित हो जाता है कि हमारे कितने ही प्रयास करने के बाद भी वह सामान्य स्तर प्राप्त नहीं कर पाता है .मैं प्राइमरी स्कूलों को दोष कदापि नहीं दे सकता ये तो सिस्टम का दोष है .वहा पर एक या दो अध्यापक ही होते है पर कार्य डाक से लेकर सारी गणनाए उन्हीं के जिम्मे होती है .बच्चे यदि किताब भी खोल लेते है वही काफी है……
सरकार द्वारा सर्व शिक्षा अभियान जैसी हवाई योजना की नहीं सशक्त, कारगर जमीनी कार्यवाही की आवश्यकता है .सरकार की योजना है कि प्राइमरी स्तर पर अंग्रेजी बोलना एवं अंग्रेजी माध्यम उपलब्ध करेगी.इस सन्दर्भ में प्रशिक्षण भी आयोजित किये जा रहे है .
क्या इन प्रक्रमों से शिक्षा में सुधार अथवा सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधर पाएगी ??
आज टीचर तो हर जगह मिलते है पर शिक्षक कहाँ चले गए ???
क्या सरकारी धन,धन नहीं होता अथवा लूटने के लिए ही होता है? फिर क्यों सब निजी विद्यालयों में ही अपने बच्चों को पढाना चाहते है ???
क्यों सरकारी स्कूल ,अस्पताल आदि में जनता की श्रद्धा ,विश्वास नहीं है? जिम्मेदार कौन हैं ??
क्या बुद्धिजीवी वर्ग का अस्तित्व समाप्त हो गया है ?अथवा अन्ना हजारे जैसे किसी समाजसेवी का इन्तजार कर रहे है ?कोई अन्ना कुछ नही कर पाएगा जब तक हमारे अंदर का अन्ना सोया रहेगा .
इतिहास गवाह है कि विश्व के सभी परिवर्तन ,सभी क्रांतियां शिक्षा ने ही की है फिर आज क्यों शिक्षा क्रांति के लिए तरस रही है ??
क्यों आज उपभोक्तावाद इस कदर हमारी शिक्षा,नैतिकता,सभ्यता, संस्कृति,धर्म,अध्यात्म को ग्रास बना रहा है ??
आज कोई टाई पहन कर,कोई लाल कपडे पहन कर,कोई सफ़ेद कपडे पहन कर ,कोई सरकारी कोई प्राइवेट सब या तो दुकानदार है या खरीददार .बेचने –खरीदने का आइटम,जिसके हाथ जो लग जाये,जिसका मन जो करे, आपको कोई कुछ नहीं कहेगा ……………..लोकतंत्र है .
आप अगर कुछ सही कदम उठाएंगे या सद्संकल्प लेते है तो आपका जीवन उपहासास्पद अथवा कठिन हो जाएगा .
“आज शिक्षा में एक क्रांति की आवश्यकता है”
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