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मैं उस हाई स्कूल में अध्यापक हूँ , जो कुछ दिन पहले चर्चा में था कि १० गुरूजी और बच्चे २७ में से २ पास . मैं हिंदी और संस्कृत पढ़ाता हूँ ,मेरा रिजल्ट भी क्रमशः ९२ एवं १०० % रहा .मैं ७ अगस्त से प्रधानाचार्य का कार्य भी देख रहा हूँ . मैं अध्यापक वरीयता क्रम में ७वें नम्बर पर हूँ पर मुझे चार्ज लेना पड़ा क्योकि प्रधानाचार्य महोदय का ट्रांसफर हो गया था .वे ३ दिन से बहुत परेशान थे, बीमार भी थे ,कोई भी अध्यापक चार्ज नहीं लेना चाहता था .विद्यालय में एक बाबु है जिसकी नौकरी राज्य आन्दोलनकारी के रूप में लगी है वह विद्यालय में महीने दो महीने में एक दो चक्कर लगा लेता है ,वह बाजार में दुकान चलाता है ,इसी वजह से विद्यालय में विवाद की स्थिति बनी रहती है . अध्यापक भी कम नहीं वे भी खूब फर्जी छुट्टियाँ लेते थे .मैं न कभी फर्जी छुट्टी लेता था और न ही मैं इन गलत परम्पराओं को उत्साहित करना चाहता हूँ क्योंकि ये भ्रष्टाचार की दस्तक है . मैंने कमान सम्हालते ही सभी को नियमानुसार चलने हेतु दबाव बनाया और बाबु को भी समझाया की उसे देशभक्त के रूप में नौकरी मिली है ,ये कैसी देश भक्ति है . मैंने सभी को एक बार अपनी गलतियाँ सुधारने का मौका दिया , आप समझ सकते है कि जब अकर्मण्यता का भूत सिर पर सवार हो तो क्या होगा . सभी अध्यापक एकजुट और मैं अकेला . मैंने गलत छुट्टियाँ बंद कर दी , विद्यालय दुर्गम स्थान में होने के कारण मैंने वेतन के लिए एक दिन का अवकाश तथा महीने में एक दो बार घर आने जाने के लिए एक दो वादनों की छूट देना निश्चित किया. एक अध्यापक ने दूसरे ही दिन एक मांग पत्र दिया जिसमें महीने में २ दिन के छद्म अवकाश हेतु लिखा था , जो कि नियमानुकूल नहीं था . बाबु ने बड़ी मुश्किल से शनिवार को आना शुरू किया क्योकि उस दिन उसकी दुकान बंद रहती थी . मैंने उस पर भी दबाव बनाना शुरू किया,उसके लिए मैंने नोटिस निकाला तो वह भी गायब हो गया चिकित्सा अवकाश लेकर ,उसने वेतन बिल भी गायब कर दिया और वेतन का चैक भी रोक दिया. पूर्व प्रधानाचार्य को अंतिम वेतन प्रमाण पत्र न मिलने के कारण वेतन नहीं मिल पा रहा था, वे बार बार फोन करते थे , मैं खुद ट्रेजरी गया किन्तु वहां से भी वेतन न निकलने कि वजह से कुछ कार्य नहीं हुआ . मैंने बाबु को फोन किया और काम करने को कहा तो उसने नोटिस को निरस्त करने को कहा और मुझे पूर्वप्रधानाचार्य कि वजह से मजबूर होकर उसकी बात माननी पड़ी. उधर एक अध्यापक जो रिजल्ट ख़राब होने के लिए बाबु की विद्यालय में उपस्थिति की दुहाई देते थे वो खुद बाबु को फोन कर कार्य न करने हेतु प्रेरित कर रहे थे. मैं बहुत परेशान हो गया ,मैंने खंड शिक्षा अधिकारी एवं मुख्य शिक्षा अधिकारी को सारी बात बताई और उचित निदान करने को कहा . आजतक न किसी अधिकारी ने सुध ली और न ही कोई आया . मेरे कार्य से सभी छात्र एवं अभिभावक संतुष्ट हैं परन्तु अध्यापक नहीं. मुझे मन के बोझ को हल्का करने एवं उत्साह को बनाये रखने के लिए देश भक्ति गीत सुनना पड़ता है . मैं अपने देश के ग्रामीण बच्चों के लिए कुछ नया करना चाहता हूँ पर कोई सहयोग नहीं करता है न साथी और न अधिकारी क्योकि सभी केवल नौकरी करते है देश सेवा नहीं . लोग इतने स्वार्थी क्यों हो गए है . यदि आप किसी रूप में मैं मेरी सहायता कर सकते है तो आपका स्वागत है .
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